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कविता

नादिरशाह

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी


किस्सा पुराना है
ऐतिहासिक है
नया है।
बाद कत्लेआम
नादिरशाह दाखिल हुआ दिल्ली किले में
महल की सारी बेगमों को
नंगा करवा दिया उसने
बैठ गया सिर झुका
अपनी नंगी तलवार किनारे रख
आँखें मूँद लीं
कुछ देर बाद उसने आँखें खोलीं
और कहा
"मैं सोचता था तुममें से कोई
जरूर ही मेरा सिर धड़ से अलग कर देगा
मेरी ही तलवार से।'
मगर अफसोस
किसी ने ऐसा नहीं किया।

 


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